Operation ब्योली : उत्तराखंड में लड़कों को ब्योली क्यों नहीं मिल रही है? तथ्य और आँकड़े

उत्तराखंड के पहाड़ी लड़कों को दुल्हन क्यों नहीं मिल रही है? गाँवों से भारी पलायन, खराब स्वास्थ्य सुविधाएँ, और सरकारी नौकरी व शहर में मकान की बढ़ती माँग के कारण विवाह योग्य लड़कों की औसत आयु 35-40 साल तक पहुँच गई है। यह सिर्फ एक सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि राज्य के लिए एक गंभीर जनसांख्यिकीय संकट है।

उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में, खासकर गढ़वाल और कुमाऊँ के गाँवों में, विवाह के योग्य लड़कों को दुल्हन न मिल पाना एक गंभीर सामाजिक और जनसांख्यिकीय (demographic) समस्या बन गया है। पहले जो समस्या केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश या हरियाणा में दिखती थी, अब वह यहाँ भी एक सच्चाई बन गई है।

प्रमुख तथ्य और आँकड़े (Facts and Statistics)

यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं जो इस संकट को दर्शाते हैं:

  • शादी की औसत उम्र में वृद्धि: पहाड़ी गाँवों में लड़कों के लिए शादी की औसत उम्र जो पहले 25 से 28 साल के बीच होती थी, अब बढ़कर 35 से 40 साल के करीब पहुँच गई है। कई युवक इस उम्र के बाद भी अविवाहित रह रहे हैं।
  • बेटियों की माँग: “शहर में मकान या सरकारी नौकरी”: यह सबसे बड़ी माँग बनकर उभरी है। कई रिपोर्टों के अनुसार, लड़की वाले अब रिश्ते पर बात करने से पहले अक्सर यह सवाल पूछते हैं कि क्या लड़के का देहरादून या हल्द्वानी जैसे मैदानी शहर में अपना मकान या प्लॉट है, या क्या उसके पास सरकारी नौकरी है।
  • नेपाल की ओर रुख: कुछ रिपोर्टों में बताया गया है कि चंपावत, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जैसे सीमावर्ती जिलों के युवक अब शादी के लिए नेपाल की ओर रुख करने लगे हैं, जहाँ पहले यह चलन लगभग समाप्त हो चुका था।

इस समस्या के मुख्य कारण (Main Reasons for the Problem)

विभिन्न अध्ययनों और सामाजिक विश्लेषकों के अनुसार, इस विवाह संकट के पीछे कई जटिल कारण हैं:

1. पलायन और जीवनशैली की कमी (Migration and Lack of Lifestyle)

  • सुविधाओं का अभाव: पहाड़ों में बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं (Doctors) और रोजगार के अवसरों की भारी कमी है। लड़कियां पहाड़ के मुश्किल जीवन के बजाय शहरों में एक बेहतर जीवनशैली (better lifestyle) चाहती हैं।
  • महिलाओं पर दोहरी जिम्मेदारी: पारंपरिक रूप से, पहाड़ में पुरुषों के नौकरी के लिए बाहर जाने के कारण, घर के बूढ़े अभिभावकों, बच्चों, मवेशियों और खेती-बाड़ी तक की सारी जिम्मेदारी बहू (महिला) के कंधों पर रही है। लड़कियां अपनी मां या परिवार की अन्य महिलाओं का कठिन जीवन देखकर अब पहाड़ में शादी नहीं करना चाहती हैं।

2. सामाजिक-आर्थिक अपेक्षाएँ (Socio-Economic Expectations)

  • नशे की लत: कुछ रिपोर्टों में महिलाओं के दृष्टिकोण से यह भी सामने आया है कि पहाड़ी क्षेत्रों में पुरुषों में नशे की लत (addiction) की समस्या है, जो उन्हें पहाड़ी लड़कों से शादी न करने का एक कारण बनाती है।
  • सरकारी नौकरी का क्रेज: निजी या छोटे-मोटे रोजगार में लगे लड़कों की तुलना में, लड़कियां और उनके परिवार स्थिरता और सुरक्षा के लिए सरकारी नौकरी वाले लड़कों को प्राथमिकता दे रहे हैं।

3. खराब स्वास्थ्य व्यवस्था (Poor Health System)

  • प्रसव के दौरान मृत्यु दर: 2021 से पहले के पाँच सालों में उत्तराखंड में प्रसव से जुड़ी दिक्कतों के कारण 798 (लगभग 800) बेटियों की मौत हुई, और यह आँकड़ा साल-दर-साल बढ़ता गया है। खराब स्वास्थ्य व्यवस्था, खासकर गर्भवती महिलाओं के लिए सुविधाओं का अभाव, एक बड़ा कारण है कि लड़कियाँ पहाड़ों में नहीं रहना चाहती हैं।

यह संकट केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि एक बड़ा सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय संकट है जो राज्य के विकास और गाँवों के अस्तित्व को प्रभावित कर रहा है।

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