विरासत महोत्सव देहरादून 2024: 30 वर्षों की सांस्कृतिक धरोहर, और प्रमुख आकर्षण

विरासत महोत्सव देहरादून, 30 वर्षों से उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का जश्न मनाता आ रहा है। इस वर्ष 15 अक्टूबर को पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज द्वारा उद्घाटन किया गया। इस महोत्सव में चोलिया नृत्य और डॉ. एन. राजम का वायलिन वादन जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल थे। महोत्सव 23 अक्टूबर 2024 को सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।

virasat Festival Dehradun 2024 Cultural Heritage and 30th Anniversary

विरासत महोत्सव उत्तराखंड के देहरादून शहर में आयोजित होने वाला एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जो राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, कला, शिल्प और संगीत का जश्न मनाता है। 1995 में इसकी शुरुआत हुई थी, और अब यह महोत्सव अपनी 30वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस वर्ष 15 अक्टूबर 2024 को, “विरासत कला और विरासत महोत्सव 2024” का उद्घाटन उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज द्वारा दीप जलाकर किया गया। यह उद्घाटन डॉ. बी.आर. अंबेडकर स्टेडियम (कौलागढ़ रोड) पर हुआ।

सतपाल महाराज ने उद्घाटन के अवसर पर कहा कि विरासत महोत्सव ने पिछले 30 वर्षों में सांस्कृतिक धरोहर को विश्व स्तर पर मजबूत किया है। उन्होंने खास तौर पर

छलिया नृत्य का उल्लेख किया, जो एक प्राचीन युद्धकला को दर्शाता है और मानव श्रृंखला के संबंधों को मजबूत करने का प्रतीक है। उन्होंने यह भी बताया कि इस महोत्सव के माध्यम से उत्तराखंड की परंपराओं को वैश्विक मंच पर स्थान मिला है। इस वर्ष महोत्सव में 5,000 से अधिक होमस्टे पंजीकृत किए गए हैं, जिन्हें पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ

इस बार महोत्सव का आगाज़ पिथौरागढ़ से आई प्रकाश रावत पार्टी द्वारा प्रस्तुत छलिया नृत्य से हुआ। यह नृत्य उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करता है और पारंपरिक रूप से शादी की बारात के साथ किया जाता है। चोलिया नृत्य, जो तलवार नृत्य के रूप में भी जाना जाता है, हजारों साल पुरानी परंपरा है और कुर्मांचल और खास जनजातियों की युद्धकला को दर्शाता है।

इस बार के प्रदर्शन में पारंपरिक वाद्ययंत्र जैसे ढोल, दमौ, नगाड़ा के साथ-साथ कैसियो का भी उपयोग किया गया, जिससे प्रदर्शन और मनोरंजक बन गया। कार्यक्रम की शुरुआत बेडू पाको बारो मासा के स्वागत गीत से हुई, इसके बाद नवरत्न मड़ोबाज, चोलिया युद्ध और मीनार जैसे प्रस्तुतियाँ दी गईं।

दूसरी प्रस्तुति में, पद्मभूषण से सम्मानित डॉ. एन. राजम और उनकी पोती रागिनी शंकर ने अपनी वायलिन की धुनों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने राग जोग में विलंबित एक ताल से शुरुआत की, इसके बाद प्रसिद्ध बंदिश “सजन मोरे घर आए” का प्रदर्शन किया। समापन राग भैरवी के साथ हुआ, जो दर्शकों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव था।

डॉ. एन. राजम का परिचय

डॉ. एन. राजम को शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने वायलिन पर गायकी अंग की शैली को विकसित किया, जो गायन के समान अनुभव प्रदान करता है। उनकी कला में कर्नाटक और हिंदुस्तानी दोनों शैलियों का प्रभाव है, जो उन्हें शास्त्रीय संगीत में एक अनोखा स्थान दिलाता है। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में 40 वर्षों तक संगीत विभाग की डीन के रूप में अपनी सेवाएं दीं और उन्हें “एमेरिटस प्रोफेसर” की उपाधि भी दी गई।

उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, और कालीदास सम्मान जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया है।

महोत्सव का समापन

इस वर्ष का विरासत महोत्सव 29 अक्टूबर 2024 को सफलतापूर्वक संपन्न होगा। महोत्सव के अंतिम दिन लोक कलाकारों और शास्त्रीय संगीतकारों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ दी जाएंगी, जो देहरादून के इस वार्षिक आयोजन का भव्य समापन करेंगी। इसके अलावा, महोत्सव ने उत्तराखंड के पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से होमस्टे की पहल को भी उजागर किया है। इस साल 5,000 से अधिक होमस्टे पंजीकृत किए गए हैं, जो पर्यटकों के लिए स्थानीय अनुभव को और भी आकर्षक बना रहे हैं।

विरासत महोत्सव न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का मंच है, बल्कि यह राज्य की कला, संस्कृति, और पर्यटन के लिए भी एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है।

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